जामिया मिलिया इस्लामिया में बीए ऑनर्स सोशल वर्क की परीक्षा के एक सवाल ने पूरे देश में बहस छेड़ दी. परीक्षा पेपर में आया यह सवाल था कि भारत में मुस्लिम अल्पसंख्यकों के ख़िलाफ़ अत्याचारों पर चर्चा करें. परीक्षा के बाद सोशल मीडिया पर उठे विवाद के बीच विश्वविद्यालय ने प्रश्न पत्र सेटर प्रोफेसर को निलंबित कर दिया, उनका नाम सार्वजनिक किया गया है और जांच में एफआईआर की बात भी सामने आयी है.
हरकारा डीप डाइव के इस एपिसोड में निधीश त्यागी के साथ प्रोफेसर अपूर्वानंद इस पूरे घटनाक्रम को विस्तार से समझाते हैं. बातचीत में यह सवाल उठता है कि जब प्रश्न सिलेबस के भीतर था, परीक्षा शांतिपूर्वक हो चुकी थी और किसी छात्र या विभाग की शिकायत नहीं थी, तो कार्रवाई किस आधार पर हुई.
यह चर्चा सिर्फ जामिया तक सीमित नहीं है. मेरठ, शारदा यूनिवर्सिटी, सेंट्रल यूनिवर्सिटी ऑफ केरल और दिल्ली यूनिवर्सिटी के उदाहरण बताते हैं कि कैसे कक्षा, सिलेबस और शोध लगातार संकुचित किए जा रहे हैं. सवाल पूछना, तथ्य पढ़ाना और समाज की आलोचनात्मक समझ विकसित करना अब जोखिम भरा होता जा रहा है.
वीडियो में इस बात पर भी गहराई से चर्चा है कि कैसे गोपनीयता तोड़ी गई, शिक्षक–छात्र के भरोसे को नुक़सान पहुंचा और विश्वविद्यालय धीरे-धीरे ज्ञान के केंद्र से प्रचार तंत्र में बदलते जा रहे हैं. यह बातचीत शिक्षा, लोकतंत्र और आने वाली पीढ़ियों के भविष्य से जुड़ा एक ज़रूरी दस्तावेज़ है.
देश के बड़े विश्वविद्यालयों में शिक्षकों के शब्दों, जुमलों और पढ़ाने के तरीकों पर लगातार निगरानी रखी जा रही है. इससे न केवल अध्यापकों में भय का माहौल बनता है, बल्कि विद्यार्थियों को समाज के अहम मुद्दों पर गहरी और आलोचनात्मक समझ विकसित करने से भी रोका जा रहा है. यह स्थिति शिक्षा के मूल उद्देश्य पर ही सवाल खड़े करती है.
इसी बढ़ते इज़्तेराब और अकादमिक स्वतंत्रता के संकट पर प्रोफेसर अपूर्वानंद ने एक महत्वपूर्ण लेख लिखा है. यह बातचीत और लेख उन सभी के लिए ज़रूरी है जो शिक्षा, विश्वविद्यालयों और लोकतांत्रिक मूल्यों को लेकर चिंतित हैं.
अगर यह चर्चा आपको ज़रूरी लगे, तो इसे अपने हमख़याल लोगों के साथ साझा करें. लेख का लिंक नीचे दिया गया है, उसे भी अवश्य पढ़ें:
https://thewire.in/rights/why-the-suspension-of-a-jamia-professor-over-a-question-paper-should-worry-us
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