उत्तर प्रदेश और बिहार कभी भारत के औद्योगिक केंद्र हुआ करते थे. 1950 के दशक में इन राज्यों की अर्थव्यवस्था तमिलनाडु और आंध्र प्रदेश से कमज़ोर नहीं थी. फिर ऐसा क्या हुआ कि 1975 के बाद उत्तर भारत औद्योगिक रूप से पीछे चला गया और दक्षिण व पश्चिम भारत तेज़ी से आगे बढ़ते चले गए.
हरकारा डीप डाइव के इस विशेष एपिसोड में अर्थशास्त्री डॉ. रथिन रॉय बताते हैं कि उत्तर भारत की मौजूदा आर्थिक हालत किसी ऐतिहासिक अभिशाप या केंद्रीय साज़िश का नतीजा नहीं है. वे विस्तार से समझाते हैं कि उत्तर प्रदेश और बिहार में डी-इंडस्ट्रियलाइजेशन कैसे हुआ, इस पर गंभीर शोध क्यों नहीं हुआ, और आम तौर पर बताए जाने वाले कारण क्यों अधूरे हैं.
बातचीत में यह भी सामने आता है कि 1991 के बाद हुए आर्थिक सुधारों का लाभ उत्तर भारत को क्यों नहीं मिला, जबकि यहां श्रम सबसे सस्ता और सबसे अधिक उपलब्ध है. डॉ. रॉय बताते हैं कि पूंजी और श्रम दोनों का पलायन उत्तर से दक्षिण की ओर कैसे एक जीरो सम गेम बन गया है, जिससे दोनों क्षेत्रों को नुक़सान हो रहा है.
इस बातचीत का केंद्र बिंदु है एक सीधा लेकिन क्रांतिकारी विचार. जहां घर, वहीं नौकरी. कपड़े, जूते, स्वास्थ्य और शिक्षा जैसे सेक्टरों में स्थानीय उत्पादन के ज़रिये उत्तर भारत में बड़े पैमाने पर रोज़गार कैसे पैदा किया जा सकता है, इस पर डॉ. रॉय ठोस उदाहरणों और अंतरराष्ट्रीय अनुभवों के साथ बात करते हैं.
यह बातचीत उन लोगों के लिए है जो उत्तर भारत की राजनीति, अर्थव्यवस्था और भविष्य को लेकर गंभीर सवाल पूछना चाहते हैं.
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