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सलिल चौधरी के 100 साल: जनसंघर्ष से मधुमती तक – पंकज राग से ख़ास बातचीत #harkara

हरकारा : ढंग की बातचीत तसल्ली से बढ़ाने का बिरला अड्डा

संगीतकार सलिल चौधरी के 100 साल पूरे होने पर हरकारा डीप डाइव का यह एपिसोड उनकी विरासत, विचार और धुनों को याद करने की कोशिश है. इस बातचीत में निधीश त्यागी के साथ हैं पूर्व IAS अधिकारी, लेखक और फिल्म संगीत के गहरे जानकार पंकज राग, जिनकी किताबें “धुनों की यात्रा ” और “कैफ़े सिने संगीत सरगम” हिंदी फिल्म संगीत पर मानक मानी जाती हैं.

एपिसोड में हम सलिल चौधरी के जीवन की कई परतों पर बात करते हैं – असम के चाय बागानों का बचपन, कोलकाता में मार्क्सवादी राजनीति से जुड़ाव, IPTA के लिए लिखे जनगीत, सर्वहारा वर्ग के संघर्ष को आवाज़ देते उनके बंगाली मास सॉन्ग, और फिर बंबई आकर हिंदी सिनेमा के संगीत को बदल देने वाली उनकी धुनें.

बातचीत में दो बीघा ज़मीन, मधुमती, काबुलीवाला, जागते रहो, आनंद, रजनीगंधा, छोटी सी बात, माया, परख, एक गांव की कहानी जैसी फिल्मों के गीतों के ज़रिए यह समझने की कोशिश की गई है कि सलिल ने किस तरह लोकधुन, पश्चिमी सिम्फ़नी, कोरस और जटिल हार्मोनी को जनता के गीतों और लोकप्रिय फिल्म संगीत के साथ जोड़ा. साथ ही यह भी कि वे किस तरह मज़दूर, किसान, विस्थापित और आम इंसान के दुःख–सुख को संगीत का केंद्र बनाते रहे.

यह एपिसोड सिर्फ़ सलिल चौधरी को श्रद्धांजलि नहीं, बल्कि यह याद दिलाने की कोशिश भी है कि जनवाद, संवेदना और कलात्मकता एक साथ मिलकर कैसा संगीत रच सकते हैं.

यहां हम सलिल चौधरी के चुने हुए गीतों की सूची दे रहे हैं, जो इन्हें याद करने का बेहतर ज़रिया है :
https://sunilslists.com/hindi-songs/l...

पाठकों से अपील :

आज के लिए इतना ही. हमें बताइये अपनी प्रतिक्रिया, सुझाव, टिप्पणी. मिलेंगे हरकारा के अगले अंक के साथ. हरकारा सब्सटैक पर तो है ही, आप यहाँ भी पा सकते हैं ‘हरकारा’...शोर कम, रोशनी ज्यादा. व्हाट्सएप पर, लिंक्डइन पर, इंस्टा पर, फेसबुक पर, यूट्यूब पर, स्पोटीफाई पर , ट्विटर / एक्स और ब्लू स्काई पर.

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